titbits
Tuesday, 16 August 2011
Thursday
8:00pm
पर्वत झरना नदी नहर
जीवन जाता यहीं ठहर
कभी तितलियों के संग उड़ना
बुलबुल जैसे गाना
कभी फुदकती गोरैया से
घुल मिलकर बतियाना
लग जाते पैरों में पर
ये पल जाते यहीं ठहर
कभी पतंग लूटने को
हुड्दंगी दौड़ लगाना
आंधी में लुक छिपकर
बगिया से आम चुराना
मगर लक्कड़हारे का डर
भरमाते क्षण यहीं ठहर
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